सृजन
कवि की सुंदर कल्पना सृजन है ; क्योंकि उसके पीछे साधना का श्रम है ।
चित्रकार की कृति में सृजन है ; क्योंकि उसमें रंगने के लिए चित्रकार की पूरी तैयारी है । कृति और कृतिकार का अंतर मिट गया है ।
विध्वंशकारी गतिविधियों का मात्र एक ही हल है : सृजन । स्वयं को सृजनात्मक होने दो ।
अस्तित्व तुमसे तुमको मांगता है ।
यह तुम्हारी इच्छा है चाहो तो स्वयं को जीवित समर्पित करो, अन्यथा मृत्यु के रूप में तो वह तुमको तमसे छीन ही लेगा ।
अस्तित्व तुमसे सृजन चाहता है । इसलिए वह तुमसे समर्पण चाहता है - जीवित समर्पण । बिना समर्पित हुए अहम नहीं जाता और अहम के रहते हुए सृजन कहां ।
सृजन निर्भार करता है ।
सृजन असीम से जोड़ता है ।
सृजन सक्रिय और गतिमय है ।
सृजन तुमको तुमसे मिलाने में सहयोगी है ।
कार्य में तल्लीनता की चरम सीमा सृजन है । ध्यान की पूर्ण अवस्था में सृजनात्मकता का जन्म होता है । जो स्वयं को बचाये रखने का प्रयास करते हैं, वे अंतत: स्वयं को खो देते हैं और जो स्वयं को खोने के लिए, छोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं, वे परमात्मा का सान्निध्य प्राप्त करते हैं ।
चित्रकार की कृति में सृजन है ; क्योंकि उसमें रंगने के लिए चित्रकार की पूरी तैयारी है । कृति और कृतिकार का अंतर मिट गया है ।
विध्वंशकारी गतिविधियों का मात्र एक ही हल है : सृजन । स्वयं को सृजनात्मक होने दो ।
अस्तित्व तुमसे तुमको मांगता है ।
यह तुम्हारी इच्छा है चाहो तो स्वयं को जीवित समर्पित करो, अन्यथा मृत्यु के रूप में तो वह तुमको तमसे छीन ही लेगा ।
अस्तित्व तुमसे सृजन चाहता है । इसलिए वह तुमसे समर्पण चाहता है - जीवित समर्पण । बिना समर्पित हुए अहम नहीं जाता और अहम के रहते हुए सृजन कहां ।
सृजन निर्भार करता है ।
सृजन असीम से जोड़ता है ।
सृजन सक्रिय और गतिमय है ।
सृजन तुमको तुमसे मिलाने में सहयोगी है ।
कार्य में तल्लीनता की चरम सीमा सृजन है । ध्यान की पूर्ण अवस्था में सृजनात्मकता का जन्म होता है । जो स्वयं को बचाये रखने का प्रयास करते हैं, वे अंतत: स्वयं को खो देते हैं और जो स्वयं को खोने के लिए, छोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं, वे परमात्मा का सान्निध्य प्राप्त करते हैं ।
bahut sundar kaha aur sahi bhi ,umda
जवाब देंहटाएंकार्य में तल्लीनता की चरम सीमा सृजन है
जवाब देंहटाएंपुर्णतः सहमत हूँ. बहुत बड़ा ज्ञान प्राप्त हुआ आपकी इस पोस्ट से.
आपका हार्दिक धन्यवाद.
आप से प्रार्थना है की आप जब भी अपनी पोस्ट प्रकाशित करे, मुझे निम्न ईमेल पर सूचित कर दिया करें ताकि तुंरत आपकी ऐसी ज्ञानवर्धक और आध्यात्म से भरी पोस्ट का चरण सुख प्राप्त कर सकूँ.
मेरा E-Mail Address : cm.guptad68@gmail.com
चन्द्र मोहन गुप्त
jaipur
www.cmgupta.blogspot.com
जो स्वयं को खोने के लिए, छोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं, वे परमात्मा का सान्निध्य प्राप्त करते हैं ।
जवाब देंहटाएंkitani gahri baat kahi hai aapne.....!!
astitav ka srijan se sambandh aur srijan ka mahtv jaana.
जवाब देंहटाएंAaj aise vyakhyano ki avshykta hai.
abhaar.