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ओशो की डायरी से

ओशो की डायरी से चुने गए कुछ विचार-बिंदु : १.सत्य सरल है , शेष सब जटिल है , लेकिन हम सरल नहीं हैं , इसलिए सत्य को पाना कठिन हो जाता है । २.मैं दो ही प्रकार के मनुष्यों को जानता हूँ , एक तो वे जो सत्य की ओर पीठ किए हुए हैं और दूसरे वे जिन्होंने सत्य की ओर आंखें उठा ली हैं । इन दो वर्गों के अतिरिक्त और कोई वर्ग नहीं है । ३. विचार शक्ति है - वैसे ही जैसे , विद्युत या गुरुत्वाकर्षण । विद्युत का उपयोग हम जान गए हैं , लेकिन विचार का उपयोग अभी सभी को ज्ञात नहीं है । फिर जिन्हें ज्ञात है वे उसका उपयोग नहीं कर पाते हैं क्योंकि उस उपयोग के लिए स्वयं के व्यक्तित्व का आमूल परिवर्तन आवश्यक है । ४. सत्य और स्वयं के मध्य कोई अलंघ्य खाई नहीं है , सिवाय साहस के अभाव के । ५. मनुष्य भी कैसा अद्भूत है ? उसके भीतर कूड़े कर्कट की गंदगी भी है और स्वर्ग की अमूल्य निधि भी । और हम किसे उपलब्ध होते हैं , यह बिल्कुल ही हमारे हाथ में है । ६. प्रभु को भीतर पाते ही सर्वत्र उसी के दर्शन होने लगते हैं । वस्तुत: जो हम में होता है , उसकी ही हमें बाहर अनुभूति होती है । ईश्वर नहीं दिखाई पड़ता है ? तो जानन

प्रेम

प्रेम से बड़ी इस जगत में दूसरी कोई अनुभूति नहीं है । प्रेम की परिपूर्णता में ही व्यक्ति विश्वसत्ता से संबंधित होता है । प्रेम की अग्नि में ही स्व और पर के भेद भस्म हो जाते हैं और उसकी अनुभूति होती है , जो कि स्व और पर के अतीत है । धर्म की भाषा में इस सत्य की अनुभूति का नाम ही परमात्मा है । विचारपूर्वक देखने पर विश्व की समस्त सत्ता एक ही प्रतीत होती है । उसमें कोई खंड दिखाई नहीं पड़ते । भेद और भिन्नता के होते हुए भी सत्ता अखंड है । जितनी वस्तुएं हमें दिखाई पड़ती हैं और जितने व्यक्ति वे कोई भी स्वतंत्र नहीं हैं । सबकी सत्ता परस्पर आश्रित है । एक के अभाव में दूसरे का भी अभाव हो जाता है । स्वतंत्र सत्ता तो मात्र विश्व की है । यह सत्य विस्मरण हो जाए , तो मनुष्य में अहम् का उदय होता है । वह स्वयं को शेष सबसे पृथक और स्वतंत्र होने की भूल कर बैठता है । जबकि उसका होना किसी भी दृष्टि और विचार से स्वतंत्र नहीं है । मनुष

ओशो और पतंजलि

ओशो हमारे युग के सर्वाधिक पढ़े जाने वाले,सुने जाने वाले प्रबुद्ध रहस्यदर्शियों में से हैं, जिन्होंने सत्य को यथा संभव हर तरह से कहने की कोशिश की है । पतंजलि पर ओशो को पढ़ना स्वयं की खोज की दिशा में एक सही कदम उन लोगों के लिए हो सकता है, जिनकी यात्रा योग के पथ से स्वयं के साक्षात्कार की ओर है । योग क्या है ? योग तंत्र से किस प्रकार भिन्न है ? योग और ताओ में क्या फर्क है ? योग और झेन में परस्पर क्या संबंध है ? लाओत्से पतंजलि से किस प्रकार भिन्न हैं ? योग की यात्रा किन लोगों के लिए है ? इन तमाम प्रश्नों का जवाब आपको ओशो की पुस्तक पतंजलि योग सूत्र में मिलेगा । ओशो द्वारा पतंजलि पर कुल 100 प्रवचनों में बोला गया है, जिनमें से 50 प्रवचन प्रश्नोत्तर रूप में और 50 प्रवचन पतंजलि के योग -दर्शन की व्याख्या पर केंद्रित हैं । ओशो के प्रवचन इस रूप में दिए गए हैं कि साधकों के प्रश्नों का निदान,समाधान साथ-साथ मिलता जाए । इसलिए प्रवचनों का क्रम इस प्रकार है कि एक अध्याय में व्याख्या सूत्र लिए गए हैं तो अगले अध्याय में प्रश्नोत्तर हैं, जिनमें साधकों की जिज्ञासाओं का समाधान है । पतंजलि के बहाने

आध्यात्म

सपने टूटे दिल चटखा सब कुछ बिखरा एक अटूट रिश्ता बांधे रहा मुझे उससे जो अदृश्य था लेकिन मजबूत था इतना कि जो बिखर जाना चाहिए था उसे आरोह के शिखर तक पहुँचा कर अंशों में स्वयं का रूप दिखा गया मैं अभिभूत हूँ उस शक्ति से जो सदा मुझे अंशों में उस अनंत का रूप दिखा देती है और यात्रा को कभी समाप्त नहीं होने देती सब कुछ सूत्रबद्ध सा बंधा है टूटन में मुक्ति है ।

कुछ विचार

जब व्यक्ति किसी ओर के कहने में हो, तो उसे समझाने की भूल न करें । जो व्यक्ति दूसरों के बहकावे में आ जाते हैं, उनमें आत्म विश्वास की कमी और निर्णय लेने की क्षमता नहीं होती । स्वीकार-भाव विधायक है; जो होता है वह रास्ते का रोड़ा नहीं बल्कि तुमसे सर्वश्रेष्ठ निकालने का एक माध्यम भर होता है ।