पूर्ण उपस्थिति

प्रत्येक व्यक्ति अपनी दृष्टि से ठीक है

सच्चा भी, झूठा भी, पुण्यात्मा भी, पापी भी, सत्चरित्र भी, कुचरित्र भी, ईमानदार भी, ज्ञानी भी और अज्ञानी भी 

अगर व्यक्ति जहां है, वहां पूरी तरह मौजूद है, उपस्थित है होश के साथ तो उक्त भेद मिट जाते हैं और व्यक्ति आत्मस्वरूप को प्राप्त होता है । 

टिप्पणियाँ

  1. संसार द्वैत है, मन जब अच्छाई और बुराई के छदम खेल मे टूटता है तो संसार का क्रियाकलाप आगे बढता है.

    भीतर जब कर्ता भाव नही है तब जो भी हम करते हैं अंह्कार भाव निर्मित नही होता और वही सत्य है. हम कर ही क्या सकते हैं ?

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  2. बहुत सुन्दर आभार |

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
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