सम्यक निरीक्षण
सामने शून्य जगत में जो परिवर्तन हो रहे हैं
वे अज्ञान के कारण ही यथार्थ दीख पड़ते हैं ;
सत्य के पीछे दौड़ने की कोशिश मत करो,
केवल मन की सारी आस्थाओं और विचारों को छोड़ दो ।
- ओशो
ज्योंही सत-असत का द्वैत खड़ा होता है,
भ्रांति पैदा होती है, मन खो जाता है ।
हम अपने मन को पहचाने, देखें ।
इसकी गति-विधि का निरीक्षण करें ।
जिसे तुम चाहते हो, उसे उसके विरुद्ध खड़ा कर देना,;
जिसे तुम नहीं चाहते - मन का सबसे बड़ा रोग है ।
जब पथ के गूढ़ अर्थ का पता नहीं होता,
तब मन की शांति भंग होती है, जीवन व्यर्थ होता है ।
मूक दर्शक रहें, पक्ष ग्रहण न करे, बल्कि अपनी वासनाओं, विचारों को ऐसे ही देखे जैसे कोई सागर पर खड़ा हो, सागर की लहरों को देखता हो । कृष्णमूर्ति ने इसे निर्विकल्प सजगता कहा है । यह बिल्कुल तटस्थ निरीक्षण है ।
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