संदेश

अक्तूबर, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

संग्राम और युद्ध

एक पुराना शब्द है संग्राम । शब्दकोश में इसका अर्थ मिलेगा - युद्ध । लेकिन इसका उत्पत्ति अर्थ है : दो गाँवों की सीमा, दो गाँवों को अलग करने वाली रेखा । यह शब्द युद्ध का पर्यायवाची शायद इसलिए बन गया, क्योंकि जहाँ  सीमा है वहाँ युद्ध भी है । ओशो कहते हैं : "जहाँ सीमा है वहाँ युद्ध भी हैं । जहाँ दो आदमियों के बीच सीमाएँ हैं, वहाँ युद्ध भी है । प्रेम की दुनिया तो उस दिन बन सकेगी, जिस दिन राष्ट्र की कोई सीमाएँ न हों । ...सीमाएँ हैं तो प्रेम की दुनिया नहीँ बन सकती ।"

गंदगी

गंदगी में पत्थर फैंकने से गंदगी के छींटे लौट कर स्वयं पर ही पड़ेगें ।

आत्मा और परमात्मा : एक या अनेक

सारे मनुष्य का अनुभव शरीर का अनुभव है, सारे योगी का अनुभव सूक्ष्म शरीर का अनुभव है, परम योगी का अनुभव परमात्मा का अनुभव है । परमात्मा एक है, सूक्ष्म शरीर अनंत हैं, स्थूल शरीर अनंत हैं । वह जो सूक्ष्म है, वह नए स्थूल शरीर ग्रहण करता है । हम यहाँ देख रहें हैं कि बहुत से बल्ब जले हुए हैं । विद्युत तो एक है, विद्युत बहुत नहीं है । वह ऊर्जा, वह शक्ति, वह एनर्जी एक है ; लेकिन दो अलग बल्बों में प्रकट हो रही है । बल्ब का शरीर अलग अलग है, उसकी आत्मा एक है । हमारे भीतर से जो चेतना झाँक रही है, वह चेतना एक है, लेकिन उपकरण है सूक्ष्म देह, दूसरा उपकरण है स्थूल देह । हमारा अनुभव स्थूल देह तक ही रुक जाता है । यह जो स्थूल देह तक रुक गया अनुभव है, यही मनुष्य के जीवन का सारा अंधकार और दुख है । लेकिन कुछ लोग सूक्ष्म शरीर पर भी रुक सकते हैं । जो लोग सूक्ष्म शरीर पर रुक जाते हैं, वे ऐसा कहेंगे कि आत्माएँ अनंत हैं । ॥(योगी)॥ लेकिन जो सूक्ष्म शरीर से भी आगे चले जाते हैं, वे कहेंगे परमात्मा एक है, आत्मा एक है , ब्रह्म एक है ।।(परम योगी)॥ मेरी इन दोनों बातों में कोई विरोध नहीं है । मैंने जो आत्मा के प्रवेश के

क्षणिकाएँ

सपने टूटे प्रेम टूटा भ्रम छूटा आदमी की परेशानी मकड़ी का जाल दम तोड़ा फंस कर आदत मजबूर लोग आदमी झगड़े वासना

सलिल वर्मा उर्फ चला बिहारी ब्लॉगर बनने

चित्र
जगमग अंदर में हिया , दिया न बाती तेल  परम प्रकासक पुरुष का, कहा बताऊं खेल  तुलसी की ये पंक्तियाँ संवेदनशील हृदय के स्वामी सलिल वर्मा जी के लिए हैं । सलिल वर्मा जी से परिचय चैतन्य आलोक के माध्यम से हुआ । पिछले वर्ष नवम्बर में मैं नागपुर से स्थानांतरित होकर चंडीगढ़ आया तो एक कवि सम्मेलन के लिए चैतन्य जी से कविता की कुछ पंक्तियाँ सुनी तो चैतन्य जी से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका । फिर उनकी (चैतन्य जी) प्रतिभा को देख ब्लॉग लिखने की सलाह दी । चैतन्य जी और सलिल जी दो अलग शहरों में रहते हुए भी प्रतिदिन विचारों का आदान-प्रदान करते रहते । कुछ महीनों में ही हमारे सामने सलिल जी और चैतन्य जी का "सम्वेदना के स्वर" ब्लॉग देखने को मिला और धीरे-धीरे मैं भी उनकी बातचीत में यदा-कदा शामिल होने लगा । थोड़े से समय बाद मुझे "उड़न -तश्तरी" बलॉग पर "चला बिहारी ब्लॉगर बनने" की टिप्पणी पढ़ने को मिली,...मैं इस बेनामी व्यक्ति से प्रभावित हुआ । कुछ महीनों तक मैं अक्सर चैतन्य जी से "चला बिहारी ब्लॉगर बनने" की टिप्पणियों की चर्चा करता रहा । तब मुझे यह कतई ज्ञात न

सोच और सृजन

व्यक्ति की वैयक्तिक सोच, जब तक सृजन में साकार नहीं हो जाती, तब तक उस व्यक्ति की वह सोच वायवीय समझी जाती है । एक पागलपन । - मनोज भारती 

लेखक और संवेदना

अनुभव प्रत्येक व्यक्ति के आस-पास घटित होते हैं, लेकिन लेखक की संवेदना ही उन अनुभवों को अभिव्यक्त करना जानती है । - मनोज भारती 

जीवन-संगीत

संगीत तुम्हारा गीत हमारा  आओ हम मिल कर खेलें  एक खेल ऐसा जिस में सुर हो हमारा तुम्हारा. जब सुर से सुर मिले  तो एक संगीत बने जीवन एक गीत है  जिसे सांसों के संगीत पर गाना है  सांस आती जाती है एक लय में  रास आती जाती है जिंदगी एक वय में खास बात होती है जिंदगी एक साथ में साथ सांसों सा हो, तो जिंदगी एक संगीत है .