क्रोध का स्रोत
यामाओकु तेशु एक युवा झेन-साधक हुआ। साधक वह जरूर था, पर अधीर इतना कि कभी किसी एक गुरु के पास न रहता । एक बार वह शोकोकू आश्रम के झेन-गुरु दोकुओन के पास गया।
अपना ज्ञान बघारते हुए यामाओका तेशु ने कहा, "मन,बुद्धि,चेतन,जगत आदि सब अस्तित्वहीन हैं । आभास मात्र। सत्य केवल शून्य है। और कुछ भी सत्य नहीं।कोई भ्रम नहीं।कोई महान नहीं,कोई अपूर्ण नहीं ...न किसी से कुछ लेना,न देना।"
दोकुओन आराम से हुक्का गुड़गुड़ाते रहे, कोई प्रतिक्रिया नहीं की। अचानक उन्होंने हुक्का उठाया और यामाओका के सिर पर दे मारा। चोट खाया हुआ यामाओका क्रोध से आग-बबूला हो गया।
'अगर सबकुछ शून्य है', दोकुओन ने उससे पूछा, 'तो यह क्रोध कहाँ से आया?'
इस प्रश्न का उत्तर बड़ा अनिवार्य है और यह प्रश्न भी बड़ा जटिल है.. जो घर फूँके आपना वही जान पाया है इसका उत्तर!!
जवाब देंहटाएंमनोज भारती जी को क्रोध क्यों नहीं आता. मैं इस सोच में पड़ गया हूँ.
जवाब देंहटाएंवाह भई वाह !
जवाब देंहटाएंक्रोध न आए वो भी आज के जमाने नें ?
कुछ प्रश्नों के उत्तर समय के गर्भ में हैं सदियों से .... ये भी ऐसा ही प्रश्न है ..
जवाब देंहटाएंढेर सारे प्रश्नवाचक चिन्ह हैं... समझ नहीं आत अकी शुरूआत कहा से की जाए???
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