ऋग्वेद

वैदिक संहिताओं में ऋग्वेद को सबसे प्राचीन स्वीकृत किया गया है।लोकमान्य तिलक ने ऋग्वेद का रचना काल 4000 ई.पू. से 6000ई.पू. के मध्य माना है।यद्यपि अन्य इतिहासकार और विद्वान इस मत से सहमत नहीं हैं, तथापि ऋग्वेद के प्राचीनतम ग्रंथ होने से सभी एकमत हैं।कतिपय विद्वानों ने ऋग्वेद को एक स्वतंत्र ग्रंथ न स्वीकार कर इसे विशालकाय ग्रंथ समूह माना है।इन विद्वानों के अनुसार ऋग्वेद किसी एक ऋषि की रचना न होकर कई ऋषियों द्वारा विभिन्न कालों में रची गई रचना है।

ग्वेद सूक्त वेद है। सूक्त का अर्थ है:उत्तम कथन।उत्तम कथन से युक्त मंत्रों के समूह को सूक्त कहते हैं।सूक्त को ऋक या ऋचा भी कहते हैं। ऋक का अर्थ है स्तुति योग्य मंत्र और वेद का अर्थ है ज्ञान।इस प्रकार ऋग्वेद का अर्थ हुआ-स्तुति योग्य मंत्रों (उक्तियों) का ज्ञान।ऋग्वेद की ऋचाओं में मुख्यत: देवताओं की स्तुतियाँ हैं।ऋषियों ने ज्ञान रूप में अपने चारों ओर जो दर्शन किया,उसे उन्होंने मंत्रबद्ध कर दिया।प्रकृति में अस्तित्व रखने वाली हर चीज उनके चिंतन का विषय रही।इसलिए देव-स्तुतियों के साथ-साथ लाभांश में सृष्टि के अनेक रहस्यों का उद्घाटन भी हो गया। 

ऋग्वेद की पाँच शाखाएँ मानी गई हैं : 1. शाकल 2.वाष्कल 3.आश्वलायन 4.सांख्यायन एवं 5.मांडूकायन।इन पाँचों शाखाओं में वर्तमान में पूर्णरूप से केवल शाकल शाखा ही उपलब्ध है। वैदिक वाङ्मय का इतिहास में पं भगवद्दत्त ने ऋग्वेद की 27 शाखाओं का परिचय दिया है।

विद्वानों के अनुसार ऋग्वेद के दो प्रकार के विभाग उपलब्ध हैं :- 
1.मंडल,अनुवाक और सूक्त । 
2.अष्टक,अध्याय और सूक्त । 
पहले विभाग के अनुसार ऋग्वेद दस खंडों में विभक्त है,जिसे मंडल कहा जाता है।मंडल में संग्रहीत मंत्र समूह को सूक्त तथा इन सूक्तों के खंडों को ऋचाएँ कहते हैं ।ऋग्वेद का यह विभाग ही महत्त्वपूर्ण और प्रचलित है।इसके अनुसार संपूर्ण ऋग्वेद में कुल 10 मंडल, 1028 सूक्त तथा 10552 मंत्र हैं।इसमें कुल 33 देवताओं से संबद्ध ऋचाएँ हैं।जिन्हें 33 कोटियों में परिगणित किया गया है।इन्हीं कोटियों को कालांतर में करोड़ के अर्थ में भ्रमपूर्ण अर्थ में मान लिया गया।जिसके चलते हिंदुओं के देवताओं की संख्या 33 करोड़ मानी जाती है, जो सत्य व तथ्य से सर्वथा परे है।इन ऋचाओं के संकलन के कारण ही इसे ऋग्वेद कहा गया।ऋग्वेद के दसों मंडलों में दूसरे एवं सातवें मंडल की ऋचाएँ सर्वाधिक प्राचीन हैं।जबकि पहला और दसवां मंडल,जिनमें सर्वाधिक सूक्त हैं, को बाद में जोड़ा गया है।

दूसरे विभाग के अनुसार ऋग्वेद में आठ अष्टक हैं, प्रत्येक अष्टक में 8 अध्याय हैं, इस प्रकार पूरे ऋग्वेद में 64 अध्याय हैं। 

विदित है कि वेदों के बाद ब्राह्मण ग्रंथों का स्थान है।इन ग्रंथों का उद्देश्य यज्ञ विधि और कर्म कांड को बतलाना है।ब्राह्मण ग्रंथों के पुन: तीन विभाग हैं : 1.ब्राह्मण 2.आरण्यक 3.उपनिषद। ऋग्वेद के दो ब्राह्मण ग्रंथ हैं : कौषीतकी और ऐतेरय।इन का परस्पर घनिष्ठ संबंध है।इन ब्राह्मण ग्रंथों में सोम और राजसूय यज्ञों का वर्णन है।

आरण्यक ग्रंथों में अधिकांशत: उपनिषदों के ही अंश संकलित हैं।ऋग्वेद के ऐतरेय और कौषीतकी दो आरण्यक हैं।ऐतरेय के पाँच ग्रंथ पाए जाते हैं,इनमें प्रत्येक को आरण्यक ही कहते हैं।दूसरे और तीसरे तो स्वतंत्र उपनिषद ही हैं।दूसरे के उत्तरार्द्ध के शेष चार परिच्छेद वेदांत ग्रंथ के रूप में गिने जाते हैं,इसलिए उनका नाम ऐतरेय उपनिषद है। कौषीतकी आरण्यक के तीन खंड हैं।इनमें से दो खंड कर्म-कांड से परिपूर्ण हैं।तीसरा खंड कौषीतकी उपनिषद कहलता है।

ऋग्वेदीय उपनिषदों में ऐतरेय, कौषीतकी,वाष्कल और मैत्रायणी हैं । 

टिप्पणियाँ

  1. बहुत सी जानकी इकट्ठे मिल गई। आशा है यह श्रूंखला आगे बढेगी।

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  2. हमारे ज्ञान चक्षु भी खुलने लगे हैं.. कई नूतन ज्ञान की प्राप्ति हो रही है.. जारी रखिये!!

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  3. aaj ek arase ke baad laptop ko hath lagaya hai ...pahile se kuch sudhar hai.swasthy me ...........apana poora dhyan rakh rahee hoo.ek betee aa gaee doosaree bhee aane walee hai......isee se poora dhyaan rakh rahee hoo....grandchildren ke sath best time jo chahtee hoo.............
    aapse nivedan hai doosare vedo par bhee sankshipt me jaankaree deejiyega.
    Apne baboojee se shayad. sunaa tha ki ek ved bimaree aur jadee bootiyo kee jankaree bhee deta hai.......
    kya ye sach hai .
    abhee ek do mahine laptop se chutkara lena gardan ke liye jarooree hai....
    chinta kee koi baat nahee.
    aap sabhee aatmeeyo ke swasthy kee mangal kamna karte hue lambee chutee le rahee hoo...

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  4. Bahut hi sarthak kadam uthhaya hai apne.
    Ummiee hai kuchh gehre paani me bhi utaarenge aap.

    --Mayank

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  5. Bahut hi sarthak kadam uthhaya hai apne.
    Ummieed hai kuchh gehre paani me bhi utaarenge aap.

    --Mayank

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