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सामवेद

साम शब्द का अर्थ है गान, अर्थात सामवेद में संकलित मंत्र देवताओं की स्तुति के समय गाये जाने वाले मंत्र हैं।अन्य शब्दों में कहें तो गेय मंत्रों अथवा ऋचाओं का ही नाम साम है तथा इनका संकलन सामवेद संहिता कहलाता है।इस वेद का स्थान ऋग्वेद और यजुर्वेद के पश्चात निर्धारित है।सामवेद में संकलित ऋचाएँ अधिकतर ऋग्वेद की ऋचाएँ ही हैं।सामवेद में कुल 1549 ऋचाएँ हैं,इनमें 75 ऋचाएँ स्वतंत्र हैं,बाकी सारी ऋचाएँ ऋग्वेद की हैं।सामवेद का ऋत्विक उद्-गाता कहलाता है।संगीत-शास्त्र का उद्-गम यहीं से होता है। सामवेद की शाखाओं की कुल संख्या 1000 मानी गई है, जिनमें 13 महत्त्वपूर्ण हैं।हालांकि वर्तमान में तीन शाखाएँ ही उपलब्ध हैं।ये शाखाएँ हैं - 1.कौथुमीय2.राणायनीय3.जैमिनीय।इन शाखाओं के आधार पर सामवेद की कौथुमीय संहिता,राणायनीय संहिता तथा जैमिनीय संहिता नाम से तीन संहिताएँ उपलब्ध हैं। इन संहिताओं के अलग-अलग ब्राह्मण,आरण्यक तथा उपनिषद भी मिलते हैं। सामवेद संहिता के दो भाग हैं- 1.पूर्वार्चिक तथा 2.उत्तरार्चिक। पूर्वार्चिक भाग को छंद,छंदसी या छंदशिका भी कहते हैं।पूर्वार्चिक भाग चार उप विभागोँ में विभक्त है-(क)आग्नेय प