स्व व परमात्मा के बीच शांति

हेनरी थोरो अमेरिका का एक बहुत बड़ा विचारक हुआ। वह मरने के करीब था। वह कभी चर्च में नहीं गया था। उसे कभी किसी ने प्रार्थना करते नहीं देखा था। मरने का वक्त था,तो उसके गांव का पादरी उससे मिलने गया। उसने सोचा यह मौका अच्छा है,मौत के वक्त आदमी घबड़ा जाता है। मौत के वक्त डर पैदा हो जाता है,क्योंकि अनजाना रास्ता है मृत्यु का। न मालूम क्या होगा? उस वक्त भयभीत आदमी कुछ भी स्वीकार कर सकता है। मौत का शोषण धर्मगुरु बहुत दिनों से करते रहे हैं। इसलिए तो मंदिरों,मस्जिदों में बूढ़े लोग दिखाई पड़ते हैं।

पादरी ने हेनरी थोरो से जाकर कहा,"क्या तुमने अपने और परमात्मा के बीच शांति स्थापित कर ली है? क्या तुम दोनों एक दूसरे के प्रति प्रेम से भर गए हो?"

हेनरी थोरो मरने के करीब था। उसने आंखें खोली और कहा,"महाशय,मुझे याद नहीं पड़ता है कि मैं उससे कभी लड़ा भी हूं। मेरा उससे कभी झगड़ा नहीं हुआ तो उसके साथ शांति स्थापित करने का सवाल कहां? जाओ,तुम शांति स्थापित करो,क्योंकि जिंदगी में तुम उससे लड़ते रहे हो। मुझे तो उसकी प्रार्थना करने की जरूरत नहीं है। मेरी जिंदगी ही प्रार्थना थी।"

कोई मरता हुआ आदमी ऐसा कहेगा,इसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। लेकिन बड़ी सच्ची बात हेनरी थोरो ने यह कही कि अगर मैं उससे लड़ा होता,अगर एक पल को भी मेरे और उसके बीच कोई शत्रुता खड़ी हुई होती तो फिर मैं शांति स्थापित करने की कोशिश करता। लेकिन नहीं,वह तो कभी हुआ नहीं है।किसके बीच,कैसी शांति स्थापित करूं?

टिप्पणियाँ

  1. साल भर पहले तक बहुत लड़ा हूँ उससे.. लेकिन अचानक लगा कि यह मेरी भूल थी, मैं तो अपने आप से लड़ रहा था.. अब प्रेम स्थापित हो गया है.. अद्भुत प्रकरण!! जीवन को रूपांतरित करने वाला!!

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